Neem Karoli Baba Mandir : नीम करोली बाबा की कहानी

नीम करौली बाबा भारत के सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित संत हुए । जिन्होंने अपनी भक्ति और ज्ञान के बल पर लोगों के मन में अपना अमीट छाप छोड़ा । ना केवल देश में बल्कि विदेश की भी जानी मानी हस्तियां तक उनके शिष्य बने । एवं यहां तक कि उन्हें साक्षात् हनुमान जी महाराज का अवतार माना जाता है । तो आईए विस्तार से जानते हैं इनका समपूर्ण जीवन परिचय।

नीम करौली बाबा का जीवन परिचय | Baba Neem Karoli Biography Hindi | Baba Neem Karoli Kainchi Dham Story in Hindi

बाबा नीम करौली का वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था।उनका जन्म उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में अकबरपुर नामक एक गांव में वर्ष 1900 के लगभग हुआ था।उनके पिता जी का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। बाबा का विवाह बाल्यावस्था में ही 11वर्ष की आयु में करा दिया गया था। वे हनुमान जी के अनन्य भक्त थे। अतः बचपन से ही भक्ति भाव की अधिकता होने के कारण 17 वर्ष की आयु में ही उन्हें ज्ञान और सिद्धि की प्राप्ती हो गई थी। उनके 2 पुत्र तथा 1 पुत्री भी थे। किन्तु गृहस्थ आश्रम में रूची ना होने के कारण उन्होंने लगभग 58 वर्ष की अवस्था में घर का त्याग कर दिया।तथा वैरागी संत की भांति पूरे भारत में भ्रमण करने लगे। उसी दौरान उन्हें भक्तों ने कई नामों से संबोधित किया (लक्ष्मण दास, हांडी वाला बाबा, तिकोनिया बाबा) तथा जब गुजरात के वाबानिया के मोरबी में उन्होंने तप किया तब भक्तों ने तलैय्या वाले बाबा नाम दिया।

बाबा के नीम करौली नाम का रहस्य | Baba Neeb Karori Ki Kahani

बाबा एक बार भारत भ्रमण के सफर के दौरान ट्रेन की फर्स्ट क्लास बोगी में सफर कर रहे थे।तभी टी.सी ने टिकट नहीं होने के कारण उन्हें नीम करौली स्टेशन के पास उतर दिया।तभी बाबा ने स्टेशन में बैठकर अपना चिमटा वही गाड़ दिया और वहीं ध्यान में बैठ गए |उसके बाद लाख कोशिशों के बाद भी इंजन स्टार्ट करने के बावजूद ट्रेन अपने स्थान से हिली तक नहीं ।यह बात लोकल मजिस्ट्रेट तक पहुंची वे बाबा को अच्छी तरह पहचानते थे ।इसलिए पूरी घटना उनको समझते देर नहीं लगी और उन्होंने फौरन बाबा से क्षमा मांगने और उन्हें सम्मान पूर्वक ट्रेन में वापस बैठने का आग्रह करने का आदेश दिया ।रेलवे कर्मचारियों तथा ऑफिसर्स ने उनसे पुनः अपनी यात्रा आरंभ करने का आग्रह किया ।और जैसे ही बाबा ट्रेन में सवार हुए ट्रेन चल पड़ी ।यह घटना नीम करौली के स्टेशन के पास हुई थी |इसलिए तभी से बाबा का नाम नीम करौली वाले बाबा पड़ गया ।

बाबा नीम करौली के कंबल का रहस्य | Baba Neem Karoli Cloths Facts in Hindi

बाबा एक कंबल ओढ़ा करते थे और वह कंबल भी किसी सिद्ध कवच से कम नहीं था ।एक बार की बात है बाबा ने अपने ही एक चेले के घर जाकर रात भर वहीं रुकने का आग्रह किया । वह एक बुजुर्ग दंपत्ति का घर था और दोनों पति – पत्नी बाबा के ही शिष्य थे ।यह घटना 1943 में तब की है जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था ।दोनों पति – पत्नी ने अपने सामर्थ्य के अनुसार बाबा की सेवा की उन्हें भोजन कराया और चारपाई पर मात्र एक चादर का बिछौना लगाकर उन्हें सुलाया |पर उनके मन में ठीक से सेवा ना कर पाने की ग्लानि भी थी ।और बाबा चारपाई पर अपनी ही एक कंबल ओढ़ कर सोए रात भर कराह रहे थे ।जिसके कारण दोनों शिष्य – शिष्या नींद नहीं ले पाए ।और रात भर बाबा के ही पास नीचे बैठकर चिंता में पड़े रहे ।सुबह होते ही बाबा बिल्कुल स्वस्थ उठे और जिस कंबल को ओढ़ कर वे सोए थे उस कंबल को दंपत्ति को देते हुए नदी में प्रवाहित कर देने की आज्ञा दी ।तथा उसे खोल कर ना देखने की कठोर चेतावनी भी दी ।और आशीर्वाद देकर चले गए कि चिंता ना करो तुम्हारा पुत्र जल्दी ही लौट आएगा ।अब जब वह कंबल को नदी में विसर्जित करने ले जा रहे थे तब उन्हें कंबल में भारीपन महसूस हुआ मानो जैसे कि कंबल में कुछ लोहे की वस्तु मोड़ कर रखी गई हो ।जबकि बाबा ने उनके समक्ष ही खाली कंबल को मोड़ कर दिया था ।लेकिन बाबा की आज्ञा थी उसे खोल कर ना देखने की सो इसलिए उन्होंने कंबल को वैसे का वैसा ही जाकर नदी में प्रवाहित कर दिया ।उसके बाद 1 महीने गुजर गए और उनका पुत्र जोकि ब्रिटिश आर्मी में एक आर्मी ऑफिसर था वह लौट आया | और उसने ऐसी आश्चर्यजनक घटना बताई जिससे कि बाबा का चमत्कार और कृपा दोनों ही स्पष्ट होते हैं ।उसने बताया कि ठीक 1 महीने पहले जब वह दूसरे विश्व युद्ध में जापानी सैनिकों के साथ युद्ध करते हुए चारों ओर से घीर गया था ।और उसके साथ के सारे सैनिक मारे जा चुके थे । तब इसके भी शरीर पर अनेकों गोलियां चली लेकिन वह गोलियां कहां अदृश्य हो गई और इसके शरीर पर कोई भी जख्म नहीं आया |जब सुबह ब्रिटिश सेना की और टुकड़ी आई तब इसे साहस आया Iऔर यह उसी रात की घटना थी जिस रात बाबा उनके घर रुके थे और कराह रहे थे ।ऐसी ही अनेकों चमत्कारी घटनाओं से भरी हुई है बाबा के जीवन की कहानियां ।जिसे बाबा के विदेशी शिष्य रिचर्ड अलपर्ट (शिष्य बनने के बाद बाबा का रखा हुआ नाम रामदास )ने बाबा के चमत्कारों पर आधारित अपने पुस्तक म मिरेकल ऑफ लव में विस्तार से वर्णन किया है ।

कहां था बाबा नीम करौली का आश्रम | Baba Neem Karoli Ashram – Neem Karoli Dham

उत्तराखंड राज्य के नैनीताल के कैंची धाम नामक स्थान में बाबा 1961 में पधारे थे ।और अपने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिलकर वर्ष 1964 में उन्होंने अपने आश्रम की स्थापना कर ली |यह आश्रम पहाड़ी अंचल में देवदार के वृक्षों के मध्य स्थित है । बाबा के अनेकों शिष्यों में से एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स,तथा उनके मित्र रॉबर्ट फ्रिडलैंड,हॉलीवुड की प्रसिद्ध नायिका जूलिया रॉबर्ट्स तथा फेसबुक एप के मालिक मार्क जुकरबर्क,आदि जैसे और भी अनेकों लोगों के नाम आते हैं ।एप्पल कंपनी का संस्थापक स्टीव जॉब्स 1974 में अपने मित्र रॉबर्ट फ्रीडलैंड के कहने पर बाबा से मिलने के उद्देश्य से भारत आए थे ।किंतु उनकी भेंट तो बाबा से नहीं हो पाई क्योंकि 1973 में बाबा का शरीर पूरा हो चुका था ।पर फिर भी उन्होंने 1 महीने तक कुंभ के मेले में समय बिताया उसके बाद वे बाबा के आश्रम चले गए और वहां कुछ दिनों तक अपना समय बिताया ।वह भारत आए तो थे अपने जीवन का रहस्य जानने ।लेकिन जब वह कैंची धाम आश्रम में रुकने के बाद वापस अमेरिका लौटे तो फिर उन्हें सफलता प्राप्त होती गई और आज वे संपत्ति और सम्मान दोनों के मालिक हैं | बाबा ने भारत के कोने-कोने में अनेकों स्थानों पर हनुमान जी के मंदिरों की स्थापना करवाई ।

नीम करोली बाबा के चमत्कार | Neem Karoli Baba Miracles Hindi

बाबा के आश्रम में भंडारे का आयोजन था |और भोजन पकाने हेतु घी की कमी हो गई थी । तभी बाबा की आज्ञा से कंस्तर में पास के जला से जल लाकर पतीले में डाला गया तो जल घी में परिवर्तित हो गए ।ऐसे ही अनेकों अनेक चमत्कारिक घटनाओं से भरे होने के कारण बाबा का कैंची धाम आश्रम आज भी देश-विदेश के भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है ।और आने पर मजबूर करता है इस धाम की आज भी इतनी महिमा है कि भक्त जो भी मनोकामना लेकर दर्शन के लिए जाते हैं वह मनोकामना अवश्य पूरी होती है ।यहां हनुमान जी सहित पंच देवी- देवताओं के विग्रह स्थापित हैं । इसके साथ ही स्वयं बाबा नीम करौली की भी प्रतिमा स्थापित है ।यहां आज भी धूमधाम से विशाल भंडारे का आयोजन हर वर्ष 15 जून को किया जाता है ।

बाबा नीम करौली ने कब पूरी की अपनी जीवन यात्रा | Neem Karoli Baba Nainital Story in Hindi | नीम करोली बाबा की मृत्यु कैसे हुई

अपना संपूर्ण जीवन सादगी और संयम के साथ लोकहित में व्यतीत करने के पश्चात 11 सितंबर वर्ष 1973 में वृंदावन धाम में बाबा ने समाधि ले ली । अनगिनत शिष्यों के जीवन को शानो शौकत से परिपूर्ण करने वाले बाबा नीम करौली ने स्वयं के जीवन में कभी भौतिक सुख साधनों और मोह माया को प्रवेश नहीं करने दिया lऔर इस प्रकार लगभग 73 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना शरीर पूरा किया ।भारत देवभूमि और साधु संतों की भूमि के रूप में प्राचीन काल से जाना जाता रहा है ।भारत में अनेकों ऐसे दिव्य संत हुए जिनमें से एक बाबा नीम करौली वाले की जीवनी आज आपने जानी

बाबा नीम करौली के द्वारा दी गई कुछ शिक्षाएं – नीम करोली बाबा मंत्र

1.बाबा का कहना था कि कभी भी लोकहित के कार्य दान, सेवा आदि दिखावा करके नहीं करना चाहिए ।तथा करने के बाद लोगों के आगे इसकी चर्चा तथा अपनी बड़ाई नहीं करनी चाहिए lइससे मन में अभिमान की भावना की भी वृद्धि होती है और इसका पुण्य फल भी प्राप्त नहीं होता है ।

  1. दुसरी बात वे कहते हैं कि अपनी कमजोरी या शक्ति का राज हमें किसी से नहीं कहना चाहिए ।अन्यथा वह उसका दुरुपयोग कर हमें तकलीफ पहुंचा सकता है ।
  2. हर उस व्यक्ति को नित्य हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए जिन्हें सुखी व समृद्ध जिवन की लालसा है।क्योंकि इसकी हर एक पंक्ति का अपना ही एक महत्व एवं अर्थ है ।जोकि सिद्ध संत श्री गोस्वामी तुलसीदास जी के मुख से उत्पन्न होने के कारण स्वयं में सिद्ध मंत्र की तरह काम करता है । और हमारी हर मनोकामना को पूर्ण करने की क्षमता रखता है |

4.उनका चौथा ज्ञान है की समय निरंतर गतिमान है जिसके कारण अच्छा और बुरा दोनों ही समय बीत ही जाता है ।इसलिए हमें कभी भी विकट परिस्थिति में हिम्मत नहीं हारना चाहिए और घबराना नहीं चाहिए ।

5.बाबा यह भी कहते हैं कि हमें सदा अपने गुरु के सानिध्य में रहना चाहिए lअर्थात गुरु से जुड़े रहना चाहिए क्योंकि गुरु ही हमें हमारी परिस्थिति के अनुसार सही सुझाव व ज्ञान देते रहते हैं ।और हमें गलत राह में जाने से भी बचाते हैं |

6.धनवान बने रहने के लिए बाबा की इस बात को भी सदा ध्यान में रखना चाहिए । कि धन पाकर हमें क्रूर और अहंकारी ना होकर दयावान और धर्मात्मा हो जाना चाहिए ।यानी कि अपने धन को सदा धर्म से जोड़े रखना चाहिए |चाहे वाह धार्मिक कार्य में अपना सहयोग देकर हो या फिर किसी असहाय की सहायता करके ।

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