पकौड़ा v/s बर्गर तथा अन्य

भारत 125 करोड़ का देश है…हम हर वर्ष एक ऑस्ट्रेलिया पैदा करते हैं..इतने बड़े जनसँख्या के देश में करोड़ों डिग्रीधारी और इनमे से कई करोड़ MBA डिग्रीधारी।

भारत पकौड़ा प्रधान देश है … ऐसा कोई नहीं होगा कश्मीर से कन्याकुमारी और द्वारका से नागालैंड तक जिसने पकौड़े न खाए हो और खाता न हो.. पकौड़े की वैरायटी भी इतनी कि कई भारतियों ने ही पकौड़ों के उपलब्ध अनेकों मॉडल को देखा तक नहीं होगा .. किसी भी चीज़ का पकौड़ा बना देने का ताकत और हुनर रखते हैं।

अमेरिका की जनसंख्या है लगभग 32 करोड़ – UP और बिहार को मिला दें तो कुछ ही कम या ज्यादा होगी और अमेरिका बिज़नेस प्रधान देश है .. उधर से एक खाने का समान निकला बर्गर एवं वो पूरे भूमण्डल के हर देश – गाँव – गली – मोहल्ले में मिलता है .. जबकि बर्गर की उतनी भी वैरायटी नहीं है जितनी हमारे देश के शहरों के मोहल्ले में प्रचलित पकौड़ों के वैरायटी की है … इसी तर्ज़ पर इटली का पिज़्ज़ा विश्व की गली गली में है .. भारत का डोसा जिसको 125 करोड़ ने जरूर खाया होगा वो किधर भी नहीं मिलता.. चीन की चाऊमीन गली गली मिलती है .. भारत का बाटी चोखा कुछ जिलों तक सीमित है.. फ्रांस का फ्रेंच फ्राइज जो आलू ही वो गली गली में है .. लेकिन अपना बटाटा वड़ा महाराष्ट्र से बाहर नहीं जा सका … बेसकिंन रोब्बिंस की आइसक्रीम पूरे विश्व में है लेकिन भारत की फालूदा कुल्फी किधर है ? … चॉकलेट विश्व में शान से खाया जाता है लेकिन बंगाल का रोशोगुल्ला – गुलाब जामुन, आगरा का पेठा, पलवल का मिल्क केक, मैसूर पाक, राजस्थान का घेवर आदि दो चार जिलों या राज्यों तक अपने देश में ही सीमित हैं।

इसका कारण कुछ नहीं … बस डिग्री लेकर एक अदद नौकरी की चाह रखने वालों ने कभी ये सोचा ही नहीं होगा .. इन्होने बर्गर – पिज़्ज़ा – चाऊमीन आदि खूब उड़ाया होगा .. पकौड़े – डोसा इडली भी खूब खाया होगा लेकिन कभी MBA की डिग्री ने ये सोचने ही नहीं दिया कि यही भारत के अनेकों व्यंजन उसकी किस्मत बदल सकते हैं … उसको कुछ नहीं करना था .. एक बिज़नेस प्लान बनाना था .. पकौड़े – डोसा – इडली को भारत में एक मानक तक के क्वालिटी का बनाना था .. जैसे तेल को एक ही बार इस्तेमाल करो आदि या फिर कोई तेल रहित साधन से तैयार करो .. बार बार तेल इस्तेमाल करने से न सिर्फ स्वाद खराब होता हैं बल्कि ये बिमारियों को बांटता है, प्रदुषण भी करता है …. इन भारतीय पकौड़ों – दोसों – इडलियों – पेठा – घेवर को ऐसे स्तर का बनाओ कि बिना मिर्च मसाला और कम मीठा खाने वाले गोरे भी टेस्ट लें …. सफाई और हाईजीन का ख्याल रखो .. कुल मिलकर बिज़नेस प्लैन में क्वॉलिटी सर्वप्रथम रखो, स्वाद पहले देशी फिर अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकता के अनुसार … और यही पकौड़े न किस्मत बदल दें तो कहना ..

करे कौन लेकिन ये … हमारे यहाँ का समाज पकौड़े तलने को शर्म का व्यवसाय मानता है .. लोग मॉल में Mcdonald, KFC, Pizza Hut जाना पसंद करते हैं .. कई देशी व्यंजनों के नाम बोलने में लोगों को शर्म आती है .. cool & forward टाइप लोग सड़क पर चलते बर्गर खाना अगड़े और स्मार्ट होने का सिंबल मानते हैं … लेकिन इधर उधर टिश्यू पेपर फेंकने पर कोई शर्म नहीं .. दरअसल हर भारतीय को सुबह उठकर शीशे में मुंह देखते हुए अपने पिछले दिन के किये काम को रिवाइंड करके देखना चाहिए .. उसमे जो जो शर्म के लायक किया उसपर शर्म करना चाहिए .. थूकने – घूस खाने – पढ़ाने के समय की चोरी – किसी के काम के बदले परेशान करना, कोने में सु सु करना कई ऐसे किए काम मिलेंगे जिस पर खुद को शर्म आएगी .. शर्म उन कर्मों पर करो, पकौड़े तल के बेचने पर तो गर्व करना चाहिए .. रोजगार करना भी क्या शर्म की बात है ।

ये भारतीय व्यंजन ऐसे हैं कि MBA वाले कुछ के चक्कर में पड़े बिना अगर इस पर ध्यान दे तो यही व्यंजन अरबों का साम्राज्य खड़ा करने का ताकत रखते हैं…अंतर्राष्ट्रीय नाम और पहचान देने की ताकत रखते हैं ये पकौड़े – दोसा – इडली – पेठा – घेवर – बाटी चोखा …. आजमा के तो देखो।

By Jitendra Arora

- एडिटर -

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