अपराध दो प्रकार के होते  हैं-
(1) जमानतीय अपराध
(2) अजमानतीय अपराध

       जमानतीय अपराध में अभियुक्त को जमानत पाने का विधिक अधिकार है। ऐसी जमानत पुलिस थाने या न्यायालय से करायी जा सकती है।अजामनतीय अपराध मजिस्ट्रेड/न्यायालय को यह अधिकार है कि वह जमानत स्वीकार करे अथवा अस्वीकार करे। जमानतीय तथा अजामनतीय अपराधों के विषय मे जमानत के अधिकार दण्ड प्रक्रिया सांहिता की धारा 436 , 437 , 439 , के अन्तर्गत वर्णित है । जो अपराध मृत्यु या आजीवन कारावास द्वारा दण्डनीय है उसमे मनिस्ट्रेट द्वारा तभी जमानत दी जा सकती है जबकि यह सिद्ध होने का कारण हो कि व्यक्ति दोषी नही है।किंतु 16 वर्ष से कम आयु के वालक, औरत, तथा अपंग अथवा वीमार अभियुक्त की जमानत अजमानतीय अपराध मे भी मजिस्ट्रेड से मिल सकती है।

    घारा 167 दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधान के अनुसार कि यदि 90/60 दिनो के अन्दर विवेचना पूरी करके न्यायालय मे आरोप पत्र दाखिल नही होता है तो निरुद्ध ब्याक्ति को जमानत का अधिकार हो जाता है तथा न्यायालय द्वारा शर्ती के साथ जमानत की जा सकती है। किंतु ऐसी जमानत के मामलो मे आरोप पत्र प्रेषित होने तथा न्यायालय द्वारा संज्ञान लेने के वाद अपराधी को पुनः हिरासत मे लेकर अपराध के गुण- दोष के आधार पर जमानत मांगने के लिए आदेश दिया जा सकता है।
                     संजय रुहेला
                        (एडवोकेट)
                     LL.B + LL.M
           मो०न०-9927136750
    चैम्बर न०54,कोर्ट कम्पाउण्ड            काशीपुर(ऊधम सिंह नगर)

By Jitendra Arora

- एडिटर -

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