एनआईए की छापेमारी और अलगाववादियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई को देखा जाए तो वह क़ानून का एक हिस्सा है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि प्रवर्तन निदेशालय या दूसरी एजेंसियों ने अलगाववादियों पर ऐसी कार्रवाई की है. ऐसे सिलसिले पहले से जारी हैं.
मगर इस किस्म की जो कार्रवाइयां हो रही हैं, उससे ये संदेश नहीं जाने देना चाहिए कि सरकार जान-बूझकर कश्मीरी नेतृत्व को अवैध घोषित करने की कोशश कर रही है.
वहीं, अनुच्छेद 35ए को लेकर काफ़ी चर्चाएं हैं, लेकिन प्रधानमंत्री के भाषण में कहीं भी इसका ज़िक्र नहीं था. हालांकि केंद्र सरकार ने इस पर अभी तक कुछ साफ़-साफ़ स्टैंड नहीं लिया है जबकि उन्हें इस पर अपना रुख़ स्पष्ट करना चाहिए क्योंकि केंद्र में मौजूद बीजेपी की गठबंधन सरकार जम्मू और कश्मीर में भी चल रही है.