भारतीय संविधान का अनु० 21 सभी व्यक्तिओ को जीने का मूल अधिकार प्रदान करता है तथा विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के विना कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को उसके जीने के अधिकार से वंचित नही कर सकता ।
    अनु० 21 मे उपबन्धित जीने के अधिकार के अन्तर्गत ही स्वच्छ पर्यावरण प्राप्त करने का अधिकार भी अन्तर्निहित है, अतः लोक स्थानों पर ध्रुमपान द्वारा इस अधिकार से किसी व्यक्ति को वंचित नही किया जा सकता है ।
    उच्चतम न्यायालय ने मुरली एस० देवरा वनाम भारत संघ, A.I.R. 2002, S.C.40 के मामले मे सभी राज्यो को निर्देश दिया कि वे सार्वजनिक स्थानों, सार्वजनिक यातायात के साधनो जिसमें रेलगाड़ीयाँ भी आती है, स्वास्थ्य संस्थानों, शैक्षिक संस्थानों, पुस्तकालयो आदि मे ध्रुमपान करने पर रोक लगा दे क्योकि एक व्यक्ति जो धूम्रपान नही कर रहा है वह भी घूम्रपान के दुष्प्रभाव से कैंसर और ह्वदय रोग जैसी बीमारियो से प्रभावित हो जाता है । अतः अनु० 21 मे प्रदत्त उसके मूल अधिकार का अतिक्रमण होता है ।

By Jitendra Arora

- एडिटर -

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