₹36 लाख से ज्यादा के विवाद में अदालत ने दिया निर्णय—संजय रुहेला की मजबूत दलीलों ने पलटा पूरा मामला

प्रस्तुत मुकदमा परिवादी अजय कुमार अग्रवाल द्वारा नियुक्त मुख्तियारे खास श्री प्रियांशु अग्रवाल द्वारा अभियुक्त मैसर्स लक्ष्मी खाद बीज भंडार प्रोपराइटर प्रभाकर फर्म स्वामी लक्ष्मी खाद बीज भंडार पचरुखी जिला सिवान राज्य बिहार के विरुद्ध मुकदमा दायर किया था,


संक्षेप में परिवादी का कथन है की परिवारी की कंपनी जो की विभिन्न प्रकार के सीड्स/उत्तम गुणवत्ता वाले गेहूं /धान/अन्य बीजों का निर्माण करती है जिसकी सप्लाई भारतवर्ष के कई राज्यों में की जाती है विपक्षी ने परिवादी की कंपनी से 01.04.2021 से दिनांक 31. 12. 2022 तक कुल मुबलिक 6812100 (68 लाख बारह हजार एक सो रूपए) के बीज क्रय किए थे जिसमें विपक्षी ने परिवादी को अलग-अलग तिथियां पर मौलिक 3140000 /अदा किया और विपक्षी गाड़ी की तरफ से परिवादी को दिनांक 01.04 2022 से 28. 12. 2022 तक कुल मौलिक 3672100 रुपए बकाया रहे थे जिसके एवज में समस्त लेखा जोखे के हिसाब से परिवादी के कंप्यूटर रिकॉर्ड में सुरक्षित है जिसके एवरेज में परिबाड़ी ने भुगतान बाद में करने को कहा था परिवार जी को अभियुक्त करने दिसंबर 2022 तक संपूर्ण भुगतान अदा करना था क्योंकि विपक्षी और परिवादी के व्यावहारिक व व्यावसायिक संबंध बहुत अच्छे थे,व्यापार में विपक्षी की साख बहुत अच्छी थी ,इसी कारण परिवादी ने विपक्षी पर विश्वास कर विपक्षी को माल उधार दे दिया, विपक्षी को परिवादी ने काफी समय दिया लेकिन विपक्षी ने परिवादी के विश्वास का फायदा उठाते हुए परिवादी से खरीदे गए बीज का भुगतान समय पर नहीं किया और विपक्षी के द्वारा भुगतान करने की सीमा समाप्त हो गई तब परिवादी ने विपक्षी से कहा कि आप हमारा भुगतान कर दो तब विपक्षी के तकाजा करने पर विपक्षी ने 3672100 दिनांक की 03.01.2023 का एक चेक दिया जिसे परिवादी ने 03.01. 2023 को अपने बैंक एस बी आई शाखा काशीपुर के खाते में जमा किया तो उक्त चेक को बैंक द्वारा रिटर्न मेमो में दिनांक 04.01.2023 को फंड इंसफिशिएंट की टिप्पणी के साथ परिवादी को वापस कर दिया, उपयुक्त चैक खाते में पर्याप्त धनराशि न होने के कारण अनादरित हो गया इस प्रकार विपक्षी के द्वारा जारी किया गया चैक बैंक में अनादृत हो गया, परिवादी ने उक्त चेक के अनादृत होने की सूचना विपक्षी को दी फिर परिवादी में कोर्ट में यह मुकदमा दायर कियाl


विपक्षी के अधिवक्ता संजय रुहेला एडवोकेट के तर्कों को सुनकर विपक्षी को निर्दोष साबित करने में करने में सफल रहे थे क्योंकि विपक्षी अपने बयान के अंतर्गत 251 व 313 दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में चेक पर अपने हस्ताक्षर को स्वीकार किया है तथा परिवादी की देनदारी को अस्वीकार किया गया है तथा संजय रुहेला एडवोकेट ने तर्क दिया किविपक्षी परिवादी के मामले को संदेह हॉस्पिटल करने में सफल रहे हैं तथा उनके ऊपर 138 पराक्रम लिखित अधिनियम 1881 के अंतर्गत विचारणीय बिंदुओं के सापेक्ष साबित नहीं किया गया है उपरोक्त तर्कों को सुनकर न्यायालय ने अभियुक्त को दोष मुक्त किया।

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