दहेज का अर्थ होता है उपहार इसकी उत्पत्ति अरबी भाषा से हुई है। भारत में प्राचीन काल से बेटियों के विवाह में वर को अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपहार देने की परंपरा रही है। इसे दहेज की प्रथा भी कही जाती है। प्राचीन काल में तो यह प्रथा मात्र एक शगुन की प्रथा थी। किंतु वर्तमान समय में यह एक भयानक कुप्रथा का रूप धारण कर चुकी है। एवं अब कई ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं कि जिन पिता ओं का दहेज दे पाने का सामर्थ नहीं होता उनके बेटियों के विवाह में काफी अड़चनें आती है। और यदि किसी प्रकार से विवाह हो भी जाए तो उन्हें ससुराल में विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है। दहेज की वह शगुन की प्रथा पूर्व काल में अपनी सामर्थ्य, क्षमता एवं इच्छा के अनुरूप भेंट की जाती थी। किंतु अब यह दहेज एक भूख बन चुकी है। जिसकी मांग लड़की के पिता के सामर्थ्य एवं क्षमता का ख्याल रखे बिना की जाती है। और इसी कारण से कई सारी परेशानियां उत्पन्न होती है। लड़की के माता-पिता भी व्यर्थ ही दुख पाते हैं। आज के इस लेख में हम दहेज के विषय पर ही चर्चा करेंगे और इसके लाभ और नुकसान के विषय में जानेंगे तो आइए प्रारंभ करते हैं।
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दहेज प्रथा से लाभ
दहेज को यदि आशीर्वाद और शगुन के रूप में लड़की के परिवार वालों के समर्थ का ख्याल रखते हुए स्वीकार किया जाए। तो यह एक शुभ शगुन है क्योंकि इस बात को हर किसी को अनिवार्य रूप से समझना चाहिए। कि हर माता पिता अपनी क्षमता से अधिक ही उपहार अपनी बेटी को देना चाहते हैं। एवं देते भी हैं किंतु फिर भी यदि इससे अधिक बढ़ चढ़कर सारी मानवता को भुलाकर वधू पक्ष की हैसियत के विरुद्ध यदि अत्यधिक संपत्ति की मांग की जाए तो इससे कई हानि है।
समाज के कुछ ऐसे भी मानसिकता वाले लोग हैं जिनका यह भी कहना होता है। कि विवाह के पश्चात नए जोड़े को अपनी नई गृहस्थी बसाने के लिए जिन चीजों की आवश्यकता पड़ेगी वह उन चीजों का प्रबंध गृहस्ती में प्रवेश करते ही तुरंत नहीं कर सकते। ऐसे में यदि उन्हें दहेज के रूप में गृहस्ती के कुछ सामग्रियां भेंट की जाए तो उन्हें सुविधा होती है। यदि लोग ऐसा ख्याल रखते हैं तो उन्हें यह भी समझना चाहिए की नयी गृहस्थी के उपयोग की वस्तुएं देने की जिम्मेदारी केवल वधू पक्ष पर क्यों छोड़ा जाए यदि नवल जोड़ी की कुछ सहायता ही करनी है तो वर वधु दोनों के परिवारी जन मिलकर क्यों ना करें जिससे कि एक ही परिवार पर आर्थिक बोझ भी नहीं बढ़ेगा। यह तो मात्र एक विचारणीय विषय है एवं सलाह भी है उन लोगों के लिए जो यह समझते हैं। कि नई जोड़ी को विवाह के पश्चात बिल्कुल स्वतंत्र रूप से परिवार से अलग जीना चाहिए एवं इसके लिए दहेज सामग्री आवश्यक है। किंतु सत्य एवं नैतिकता की बात करें तो कोई भी नई दंपत्ति जोड़ी जब गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते हैं। तो उन्हें गृहस्थी के विषय में जरा भी अनुभव नहीं होता। ऐसे में उनको परिवार के बड़ों की सलाह एवं सहयोग की आवश्यकता होती है। परिवार के साथ ही उनके गृहस्थी का प्रारंभ अधिक अच्छी तरह से हो सकता है। इसलिए ऐसी धारना हमें नहीं रखनी चाहिए कि उन्हें बिल्कुल गृहस्ती के नए सामान एकत्र करके देकर अलग एवं स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए गृहस्थी करने के लिए। ऐसी धारणा बिल्कुल गलत है एवं इससे किसी भी प्रकार का लाभ नहीं देखा जाता।
दहेज प्रथा के नुकसान
1.ऐसी कुप्रथाएं आज के वर्तमान स्वतंत्र भारत के लिए एक कलंक का विषय है। एवं यह एक प्रकार से सशक्त भारत को खोकला किए जाने की प्रक्रिया ही है। एवं समाज के लिए बेहद ही हानिकारक भी है। यदि दहेज की इस गैरकानूनी कुप्रथा को बंद ना किया गया तो यह देश में महिलाओं की स्थिति को और अधिक बिगाड़ देगा। अतः हमारा मानना यह है कि इस कुप्रथा से किसी को कोई लाभ नहीं हो सकता। केवल और केवल हानी ही हो सकती है।
- कई बार दहेज की व्यवस्था करने के लिए माता पिता घर इत्यादि तक गिरवी रख देते हैं। तो कोई किसी प्रकार का ऋण ले लेते हैं एवं कई लोग भ्रष्टाचार का मार्ग तक अपना लेते हैं। ऐसे में यदि वे लिए गए कर्ज का ब्याज चुका पाने में असमर्थ होते हैं । कई बार उन्हें आत्महत्या तक करनी पड़ जाती है। एवं जो लोग भ्रष्टाचार के अर्थात् घूसखोरी टैक्स चोरी इत्यादि जैसे काले धन को जमा करते हैं। बेटी के विवाह हेतु यदि यह दहेज रूपी राक्षस को समाप्त कर दिया जाए तो यह भ्रष्टाचार में भी कमी आएगी। एवं लड़की के माता-पिता कर्ज लेने एवं ना चुका पाने पर आत्महत्या करने को मजबूर नहीं होंगे।
3.एवं कहीं ना कहीं यह दहेज की प्रथा भ्रूण हत्या का भी एक बड़ा कारण है। क्योंकि साधारण से साधारण वर्ग के माता पिता भी एक बेटी के लालन पालन से नहीं डरते। किंतु दहेज रुपी उस असूर से कतराते हैं जोकि पूरे परिवार के चिंता एवं लड़की के दुख का कारण बनता है। एवं इसी के कारण आज के नवीन युग में भी बेटियों को बोझ समझकर भ्रूण हत्या जैसा जघन्य ने अपराध करते हैं लोग।
4.तनावग्रस्त रहती हैं स्त्रियां दहेज की वजह से कई बार ऐसा भी होता है। कि वधू ब्याह कर ससुराल चले जाने के पश्चात उसे वहां दहेज को लेकर अनेकों ताने सुनने पड़ते हैं। अनेकों प्रकार से प्रताड़ित भी की जाती हैं एवं उसे हीन दृष्टि से देखा जाता है। विभिन्न प्रकार के कष्ट दिए जाते हैं जिसका विरोध करना भी अत्यंत कठिन होता है। एवं यदि कोई स्त्री विरोध करें भी और अपने पति एवं ससुराल का त्याग करके अकेली रहना भी चाहे। तो समाज के लोग भी उसे सम्मानित दृष्टि से नहीं देख पाते। ऐसी स्थिति में स्त्रियों के पास भी एकमात्र उपाय आत्महत्या कर लेने का ही होता है। एवं इसी के फलस्वरूप अक्सर समाचार पत्रों में ऐसी वारदातें पढ़ने को मिल ही जाती है। एवं कई स्थानों पर तो दहेज के भूखे लोग स्वयं ही बहु अथवा पत्नी को मार डालते हैं।
- इसके अतिरिक्त इसी दहेज की प्रथा के कारण सुयोग्य बेटियों के विवाह की उचित आयु होने के पश्चात भी उनके विवाह में कठिनाइयां आती है। और उनके योग्य वर ना मिल पाने से अयोग्य लड़के के संग ही विवाह करना पड़ता है। जिसके कारण वे आपस में आजीवन तालमेल नहीं बिठा पाते। एवं उन्हें अपनी गृहस्थी को सही तरीके से चलाने में परेशानियां आती है।
- यदि कोई दहेज के लोभी व्यक्ति लोभ वश किसी लड़की से विवाह करते हैं तो यह बात बिल्कुल निश्चित होती है। कि ऐसे लोभी व्यक्ति कभी भी उस लड़की को सम्मान व सुख के साथ नहीं रहने देंगे। जब तक लड़की के पिता का दीया धन उनके पास होगा तब तक वे अच्छा व्यवहार कर सकते हैं।किंतु दहेज का वह धन समाप्त होते ही वे लड़की को प्रताड़ित ही करेंगे।
- इसके साथ ही दहेज के लोभ में लड़की एवं उसके परिवार वालों की चिंता किए बगैर की गई शादी में कभी भी सम्मान नहीं पाया जा सकता। क्योंकि विवाह 1 पवित्र बंधन है जिसे आजीवन साथ रहकर निभाया जाता है। इसमें एक दूसरे के लिए प्रेम व सम्मान अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। किंतु जो लोग दहेज के लिए विवाह करते हैं। उन्हें तथा उनके घर वालों को कभी भी दुल्हन की दृष्टि में सम्मानीय नहीं समझा जाता। जिनके कारण दुल्हन के परिवार वालों को इतना कष्ट उठाना पड़ता है। उन्हें वह भला क्या सम्मान दे पाएगी ऐसी स्थिति में आजीवन वधु के मन में एक गहरी घृणा छुपी होती है। जिससे की आपकी आने वाली पीढ़ी भी प्रभावित होती है।
अतः दहेज प्रथा को समाप्त कर देना ही सभी के लिए उचित हितकारी एवं लाभकारी है।
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